...

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सच सा बन जाऊ
कर करम मुर्शद मै तेरी सच की सच मे आवाज़ बन जाऊ
तू सज़ा मुझें यू कि मै सुरीले सुरों का तेरा साज़ बन जाऊ

ना रहूँ महफ़िलों की कुछ पल की सजावट का मै सामान
दिल के तेरे मै वो मिशन का बशर सा इक़ ताज बन जाऊ

रहूँ ना मै भी उस ख़ाली बे-मतलब से शोर की आवाज़ सा
बिन शोर किये सच की आवाज़ का वो आगाज़ बन जाऊ

जो दे हर किसी को सुकून वो इक़ तेरा मै इंसान बन जाऊ
हो कोई ऐसा निशां सच की जो मै तेरी पहचान बन जाऊ

हक़ीक़त है क्या मुझें क्या ख़बर हूँ तेरा मै तेरा बन जाऊ
ल्फ़ज़ो से ना बातों से बंदा तेरा सच मे सच सा बन जाऊ।


© अनिल अरोड़ा "अपूर्व "