...

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शीशा तोड़ कर, मेरा नाम लिखा हथेली पर।
जो किए नहीं, वो कर डाला।
हाथों में ज़ख्म भर डाला।
सांसों में बस मेरी यादें है।
कुछ कहने की उनकी फरियादें है।
मै जिसे प्यार किया, वो थी चारु बाला।
शीशा तोड़ के, हथेली पे मेरा नाम लिख डाला।



मुझे पाने की उनकी सोच थी।
हर वक्त मुझसे प्यार करने की सोच थी।
रातों में भी उनके लिए सबेरा था।
वो सपनों में भी, मुझे घेरा था।
मुझे आने - जाने के लिए, वो खोल दिया अपने दिल के ताला।
शीशा तोड़ के...........................।



वो रह ना सकी तन्हा मेरे बिन।
रातों में चैन से सोयी नहीं, सबेरा किया वो तारे गिन- गिन।
वो मुझ पर मरती थी, हद से ज्यादा।
अपना प्यार निभाने के खातिर, करती रही वो वादा।
मुझसे इतना चाहत थी, क्या बताऊं? वो जपती रही माला।
शीशा तोड़ के......................।




मैंने वादा किया था, आएंगे तुम्हारे घर एक दिन।
वो नहीं मानी, आंसू गिराती रही जमीं पर मेरे बिन।
बस उसे रोग लगा था, मेरे पास रहे कहीं ना जाए।
मै राधा बनूं उनके लिए, मेरे लिए होठों से बांसुरी बजाएं।
वो मेरे लिए क्या नहीं किया, पीती रहीं विष भर- भर के प्याला।
शीशा तोड़ के............................।



उनकी यादें मेरे लिए जाती नहीं है।
कितना समझाऊं उनको, वो मानती नहीं है।
वो बुलाती बहुत थी मुझे, लेकिन मै क्या कर पाता।
उनकी ऐसे ही हालत देखकर, मुझे भी रोना आता।
कैसे संभालते उसे, वो पहले से ही पी लिए थी इश्क़ का हाला।
शीशा तोड़ के.........................।।


© writer manoj kumar🖊️💔❤️😭😭😭😭