दोहे
गुरु की वाणी विष नहीं, उनकी न शिष्य से बैर।
भट्ठी जलाता कोयला, तपना ही लोहन खैर ।।
प्रेम घने चहुओ फिरे, मनु पावड़े बुनियों बहलाऊ।🌧️
निज हिय पलके खिलेऊ, जुठाए जत्था हिय बहाऊँ।।💓
वन तेरी न जल तेरा, मिट्टी का कोय नाहि।
ये सारे परमार्थी, अब भी नही समझा भाई।।
मैली है तन मेरी मन तेरा, तू काला...