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एक साया साथ चलता है
एक साया साथ साथ चलता है
जिन्दगी बन साथ साथ चलता है
अक्सर उस जिन्दगी को ही ढूँढा करती हूँ
उस साये से ही बातें किया करती हूँ
ए ज़िंदगी तू कहाँ गायब हो गई
कहाँ कहाँ न ढूँढा तुझे
तू थी तो मैं मुस्कुराती थी
तेरी बचकानी बातों पे खिलखिलाती थी
कहाँ चली गई क्यों मुख मोड़ चली
बीच मझधार में क्यों छोड़ चली
तू तो मेरी एकमात्र सहेली थी
अच्छा बुरा सब समझाती थी
तू क्यों बदल गई
दिल खोल कर तुझसे ही तो
बात करती थी
अपना हक़ तुझपे जताती थी
जब चाहे मुँह फुला कर बैठ जाती थी
पता है मुझे भी अब भी मुझे तू
अकेले होने नहीं देती है
साया बन मेरा मेरे साथ साथ चलती है
तुझे क्या पता अब भी मैं तुझसे
बातें करती हूँ
हर तीज त्यौहार पे सर्वप्रथम
आपको ही तो याद करती हूँ
बचपन के वो दिन भुलाए नहीं भूलते हैं
बाबुल की यादों में खोए रहते हैं
आज भी जब बीती बातें याद कर
कभी हँस तो कभी रो देती हूँ
कभी कभी आपकी भी माँ बन
आपके कम खाना खाने पर
आपको डाँट लगाती थी
डाँट लगा कर खुद ही रो देती थी
जैसे माँ अपने बच्चे को डाँट कर दुःखी हो जाती
वैसे ही बाबुल मेरे मेरी भी हालत हो जाती थी
पर तुम क्यों समझोगे
तुम्हें तो अपनी लाड़ली बेटी की डाँट सुनने में भी
मज़ा आ जाता था
तुम तो मेरी विदाई में भी छिप गए
सामने न आओगे कह दिए
बिन आपसे गले मिले
आपका आशीर्वाद लिए बिना
भला कैसे चले जाते ससुराल
मायके जब भी आते साँझ होते ही
समोसे जलेबी ले आते
देखो न सब कुछ वैसे का वैसे है
बस कमी आपकी आज भी खलती है
कैसे बताएँ हम आपको
आपके बिना कितना सूना सूना लगता है
लगता है महसूस भी होता है
आज भी हर त्यौहार पे आशीर्वाद देते दिखते हो
होली के सारे रँग आपने ही तो दिए हैं
जिससे जिन्दगी हमारी रंगी है
इन रँगों के लिए
नित आपको ही तो शुक्रिया कहती रहती हूँ
© Manju Pandey Choubey