...

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हम देखते रहे
अपनी बर्बादी का आलम देखते ही रह गए।
खुद ही अपने आसुओं की धार में हम बह गए।

नींव थी मजबूत अपनी पर नही मालूम क्यों,
इक हवा के झोंके पर से पल में हम ढह गए।

लोग मेरी बातों को अब भी नहीं पाएं समझ,
किंतु हम हर बात को इशारों से ही कह गए।

जो मेरे अपने है वो सारे ही मेरे साथ है,
मतलबी जितने थे मुझसे दूर अब वह-वह गए।

शहर में चारों तरफ है रौनकें ही रौनकें,
किंतु हम इस शहर में वीरान बनकर रह है।
© Ank's