तुम एक खूबसूरत मोड़ देकर चले गए|
कदम रखकर मेरे दिल के बंजर से मकान पर
चले गए इसे बस सरसरी निगाह से देखकर
मुझे गम इसका नहीं कि तुम ने इसे आबाद नहीं किया,
मगर गम तो हमें इसका हुआ कि तुम चले गए हमें दिलासा-ए-इंतज़ार करा कर।
सदियों से वीरान इस दिले मकान को खोलकर
आखिर तुम क्यों चले गए इसे एक खूबसूरत सा मोड़ देकर।।
चले गए इसे बस सरसरी निगाह से देखकर
मुझे गम इसका नहीं कि तुम ने इसे आबाद नहीं किया,
मगर गम तो हमें इसका हुआ कि तुम चले गए हमें दिलासा-ए-इंतज़ार करा कर।
सदियों से वीरान इस दिले मकान को खोलकर
आखिर तुम क्यों चले गए इसे एक खूबसूरत सा मोड़ देकर।।