"महबूबा का पुराना ख़त"
(चेतावनी - कृपया हँसे 😆 नहीं, इसे गंभीर होकर पढ़ें।)
"महबूबा का पुराना ख़त, इक दिन लगा मेरे हाथ,
कर रहा था जब सफ़ाई, मैं अपनी बीवी के साथ,
📄📄📄
उड़ चली तहरीर भी, उसकी शौखियों की तरह,
पका था रंग कागज़ का, उसकी जुल्फ़ों की तरह,
आयी थोड़ी हँसी मुझे, कर याद उस फसाने को,
बचकानी-सी बातें उसमें, लिखीं मुझे रिझाने को,
"चम्मच में चम्मच, चम्मच में जीरा,
तू मेरा मजनू, लाखों में हीरा,"
🤠🤠🤠
उसके ख़त को पढ़कर तब, रोक न पाया मैं हँसी,
गिरा धड़ाम से नीचे, बनियान जो सीढ़ी में फँसी,
🪜🪜
😆😆😆😆
मैं अलग, झाड़ू अलग, बनियान सीढ़ी पे झूल गयी,
पढ़ा जो उसका ख़त उठाकर, बीवी आपा भूल गयी,
फिर उठाकर झाड़ू वही, गुस्से में वह बोल पड़ी,
मैं चली आराम करने, सफ़ाई ये तुम्हारे ज़िम्मे पड़ी,
ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination
"महबूबा का पुराना ख़त, इक दिन लगा मेरे हाथ,
कर रहा था जब सफ़ाई, मैं अपनी बीवी के साथ,
📄📄📄
उड़ चली तहरीर भी, उसकी शौखियों की तरह,
पका था रंग कागज़ का, उसकी जुल्फ़ों की तरह,
आयी थोड़ी हँसी मुझे, कर याद उस फसाने को,
बचकानी-सी बातें उसमें, लिखीं मुझे रिझाने को,
"चम्मच में चम्मच, चम्मच में जीरा,
तू मेरा मजनू, लाखों में हीरा,"
🤠🤠🤠
उसके ख़त को पढ़कर तब, रोक न पाया मैं हँसी,
गिरा धड़ाम से नीचे, बनियान जो सीढ़ी में फँसी,
🪜🪜
😆😆😆😆
मैं अलग, झाड़ू अलग, बनियान सीढ़ी पे झूल गयी,
पढ़ा जो उसका ख़त उठाकर, बीवी आपा भूल गयी,
फिर उठाकर झाड़ू वही, गुस्से में वह बोल पड़ी,
मैं चली आराम करने, सफ़ाई ये तुम्हारे ज़िम्मे पड़ी,
ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination
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