...

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बस! नामी रिश्ता दोस्ती का
वो दोस्त खास होने का दावा करता है
मगर! कभी Hiii Hello नहीं करता है
ना ही कभी हमारा हालचाल पूछता है
लेकिन, जब भी कभी उससे पूछती हूं
कि मैं क्या हूं? उसकी जिंदगी में
तो वो हमेशा यही बात मुझे बोलता है
कि खास दोस्त हो तुम जिंदगी में मेरी
मगर!
कभी मैंने उसकी दोस्ती में मेरे लिए
तव्वजो और फिक्र को नहीं पाया है
किसी के ना होने पर जो बेचैनी होती है
ना ही उस बेचैनी को उसके माथे पर पाया है।
हां! एक वक्त था जब अकेले में रात को
वो अपनी शायरियों से मन मेरा लुभाता था
बातों से खास फील करवाता था
मगर! वो सब बस कुछ दिन का निकला
हकीकत में मुझे उसने वो वक्त नहीं दिया
जो एक खास को दिया जाता है
वक्त तो सारा उसने अपना महफिल को दिया
मेरे पास तो जैसे!
वो बस वक्त बहलाने को आया था।
© Silent Eyes