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तुझेक्याख़बर
#तुझेक्याख़बर

यही शहर शहर-ए-क़रार है तो दिल-ए-शिकस्ता की ख़ैर हो
मेरी आस है किसी और से मुझे पूछता कोई और है

ये वो माजरा-ए-फ़िराक़ है जो मोहब्बतों से न खुल सका
कि मोहब्बतों ही के दरमियाँ सबब-ए-जफ़ा कोई और है

हैं मोहब्बतों की अमानतें यही हिजरतें यही क़ुर्बतें
दिए बाम-ओ-दर किसी और ने तो रहा बसा कोई और है

बहुत आए हमदम ओ चारा-गर जो नुमूद-ओ-नाम के हो गए
जो ज़वाल-ए-ग़म का भी ग़म करे वो ख़ुश-आश्ना कोई और है

ये 'नसीर' शाम-ए-सुपुर्दगी की उदास उदास सी रौशनी
ब-कनार-ए-गुल ज़रा देखना ये तुम्ही हो या कोई और है

© villan001