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जमाने की भीड़ में क़िस्सा...........✍🏻
मैं ज़र्रे ज़र्रे का इक हिस्सा बन रहा हूं
जमाने की भीड़ में क़िस्सा बन रहा हूं
इम्तिहानों का ज़िक्र सबके लबों पे है
मैं यूं ही नहीं आज झोंका बन रहा हूं

हैसियत की बातें चारों ओर मशहूर है
ना चाहते हुए भी अब तन्हा बन रहा हूं
मुस्कुराते हुए चेहरों के कुछ तो इरादें है
मैं किरदारों की भीड़ में अँधेरा बन रहा हूं

कागज़ों पे सांसों का हिसाब उतार रखें है
मैं खुद को सबके लिए भरोसा बन रहा हूं
कतरे - कतरे में बिखरी बिखरी इक उम्र है
इस भीड़ भाड़ का खेल-तमाशा बन रहा हूं

ज़ख़्मों के बढ़ते क़र्ज़ का विवरण लिखें है
आजकल ज़र्रे ज़र्रे का मैं हिस्सा बन रहा हूं
यूं ही नहीं यादों के पन्नों पे खुद को छोड़ें है
इस ज़माने की भीड़ से ही लम्हा बन रहा हूं

दुनियादारी में ज़िम्मेदारी की कहानी बुने है
मैं भीड़ की कहानियों का चेहरा बन रहा हूं
ख़ामोश निशानियों के कुछ ज़िक्र समेटे है
मैं इंतजार का इक गुज़रा ज़माना बन रहा हूं

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes