...

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मोह के धागे
हां हम अब रोते नहीं पहले की तरह
हां हम अब अकेले नहीं रहते पहले की तरह
हां हम अब सब से मिलते हैं
हां हम अब फिर से हंसते हैं
मगर यह हम ही जानते हैं
कि अंदर ही अंदर कितना रोते हैं

तुम बताओ तुम्हारा क्या हाल है
क्या तुम्हारे दिल को मिली राहत है
तुम्हारी राहत का तो पता नहीं हमें
मगर हमारे दिल को तो तुम्हारी ही चाहत है
हां हम अब रोते नहीं हंसते हैं तो क्या
वह तो इसलिए
कि अब हमें तुम्हारे बिना जीने की आदत है

अब तुम खुश हो इसीलिए हम भी खुश होते हैं
तुम आगे बढ़ो यही तो हम चाहते हैं
तुम सोचते हो हम भी आगे बढ़ गए
कि हम अब हंसते हैं खिल खिलाते हैं
मगर जरा कभी पीछे मुड़कर देखना
वह मोह के धागे हमें अभी उलझते हैं
© R.G. Bohra