...

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🦠ये जंजीरें।

इन जंजीरों को तोड़कर
रुख हवा का मोड़कर
चल रहे हैं देखो हम
मिला कदम कदम
मंजिल दिखती है पास
रखकर अलग हर भ्रम
लगा रहे बल पूरा हरदम।।
तिमिर संशय का है नही
इन जंजीरों ने जो झनकाना चाहा
लगा जोर अपना पूरा
सत्य पथ से भटकाना चाहा
पर परवाज भरने की थी चाहत
उङ छू लें आसमां तब राहत
भर रहे उङान फैला डैने है जितना खम।।
झकझोर रहीं हैं ये जंजीरें
हर पग पर ठोकर सजा रचा
क्यूँ कर इनका जिक्र करे
जब ख्वाहिशों का सजीला पंख मिला
हर कठोर ठोकर होगा ही पार
जब पूर्ण विवेक से होगा इस पर वार दर वार
चूमना है मंजिले-मुकद्दर भूल हर गम,हर गम।।
✍राजीव जिया कुमार,
सासाराम,रोहतास,बिहार।
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© rajiv kumar