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लगता है
सवेरा नहीं
अब अंधेरा ही अच्छा लगता है
सूरज से जलती है आंखे
अब मुझे चांद में ही अच्छा लगता है
खुद ही को ही समझता हू मैं अपना
बाकी हर कोई मुझे पराया लगता है
इतना टूट चुका है दिल पहले से ही
की किसी पर यकीन करने का भी
इसको किराया लगता है
© chetan
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