...

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उस कोने में
ये जो गुफ्तगू हो रही है दिमाग के उस कोने में
जो सोने नहीं देता रातों को और
देता सौ बहाने बारिशों में रोने के
जंग जो लड़ता है दिमाग
रखे जकडे नसो को बेहिसाब
जो दे ढील तो ज़रा हम सो जाएं
इसकी इन जंजीरों सी बातें
चुभती है जेसे चीरे कोई
कैसे छुड़ाए पीछा
जो खुद खड़ा है पीछे मेरे
खिन्नता से घिरे हुए
कैसे लगा दू निषेध उन्हें होने से