शब्द साहित्य
विथावान
वो उमड़ता हुआ
इठलता हुआ
अहंकार....
पल रहा हैं
मनुष्य और नारी में
अभिमान....
जैसे समंदर की लहरों में उछल रहा हैं
वो नदियों के आवेग में उमड़ रहा हैं
मनुष्य और औरत में मिजाज पल रहा हैं
तुम्हारे मिजाज में भी यही अंश हैं
गुण हैं...
जो रावण में था
कौरवों में था
वही मिजाज फिर उमड़ रहा हैं
इंसान अपने अपने गुण से चल रहा हैं
वेग में उमड़ी हलचल जो हलाकन मचाती हैं
शांत होने पर अफ़सोस में रह जाती हैं
इस सृष्टि के परिवार में
कोई उदंड हैं कोई शांत हैं
सब परिचित हैं अपने अपने अहंकार से
अंततः..... अफ़सोस.... जो अहंकार के
परिणाम का अंतिम पड़ाव हैं
एकदम एकांत, शांत और मौन जनशून्य
अवला के मिजाज का अंत विथावान हैं
बस यही अहंकार का परिणाम हैं...!!
✴️✴️✴️
मजबूरियां
देर रात तक आंखें टक टकी लगाए बैठी हैं
घड़ी की सुई... टक.. टक... टक....!
मन में उमड़ते हैं कई उलझें हुए विचार
दिल होता रहा उसका धक.. धक.. धक...!!
ये आस उसकी हैं जो
पिता के आने के इंज़ार में हैं
जो लोग अक्सर नौकरी के लिए
बहार दूसरे शहर जाया करते हैं.
ऐसे बच्चे अक्सर मन मार कर
पिता के आने के इंतजार में
सों जाया करते हैं
ऐसी ही कई मजबूरीयां हैं जो
अपनों को गैर बनया करती हैं
✴️✴️✴️
नामचीन
नफरते उगलते हैं
आम लोगों से वो दूर चलते हैं
छपते हैं वो पेज थ्री पर
क्योंकि वो नंगे नामचीन हैं
नंगे गरीब भी हैं
वो नामचीन नहीं होते
फर्क लिवास और सोच का हैं
वो छपते हैं अखवारों में
जब चुनाव होते हैं
तब गरीब छपते हैं
और वो नामचीन होते हैं
नेता हर नंगे गरीब के साथ होता हैं
वोट लेता हैं, सत्ता में आता हैं
गरीब वहीं के वहीं रहता हैं
तब नेता नामचीन होते हैं
चमक दमाक के लोग
अपवाद पैदा कर ख्यात होते हैं
वो आम जनमानस में द्वेष होते हैं
बेशर्म की हदों के बाद भी बेशर्म रहते हैं
यही नामचीन हैं जो प्रख्यात होते हैं
कई लोग इस मशहूरियत के अंधे होते हैं
निकल पड़ते हैं नमी के गुम नाम में
उघड़ते बदन के परवान होते हैं
वो भी विख्यात होते हैं
जब कहीं बलात्कार होते हैं
सवाल मन में हर...
वो उमड़ता हुआ
इठलता हुआ
अहंकार....
पल रहा हैं
मनुष्य और नारी में
अभिमान....
जैसे समंदर की लहरों में उछल रहा हैं
वो नदियों के आवेग में उमड़ रहा हैं
मनुष्य और औरत में मिजाज पल रहा हैं
तुम्हारे मिजाज में भी यही अंश हैं
गुण हैं...
जो रावण में था
कौरवों में था
वही मिजाज फिर उमड़ रहा हैं
इंसान अपने अपने गुण से चल रहा हैं
वेग में उमड़ी हलचल जो हलाकन मचाती हैं
शांत होने पर अफ़सोस में रह जाती हैं
इस सृष्टि के परिवार में
कोई उदंड हैं कोई शांत हैं
सब परिचित हैं अपने अपने अहंकार से
अंततः..... अफ़सोस.... जो अहंकार के
परिणाम का अंतिम पड़ाव हैं
एकदम एकांत, शांत और मौन जनशून्य
अवला के मिजाज का अंत विथावान हैं
बस यही अहंकार का परिणाम हैं...!!
✴️✴️✴️
मजबूरियां
देर रात तक आंखें टक टकी लगाए बैठी हैं
घड़ी की सुई... टक.. टक... टक....!
मन में उमड़ते हैं कई उलझें हुए विचार
दिल होता रहा उसका धक.. धक.. धक...!!
ये आस उसकी हैं जो
पिता के आने के इंज़ार में हैं
जो लोग अक्सर नौकरी के लिए
बहार दूसरे शहर जाया करते हैं.
ऐसे बच्चे अक्सर मन मार कर
पिता के आने के इंतजार में
सों जाया करते हैं
ऐसी ही कई मजबूरीयां हैं जो
अपनों को गैर बनया करती हैं
✴️✴️✴️
नामचीन
नफरते उगलते हैं
आम लोगों से वो दूर चलते हैं
छपते हैं वो पेज थ्री पर
क्योंकि वो नंगे नामचीन हैं
नंगे गरीब भी हैं
वो नामचीन नहीं होते
फर्क लिवास और सोच का हैं
वो छपते हैं अखवारों में
जब चुनाव होते हैं
तब गरीब छपते हैं
और वो नामचीन होते हैं
नेता हर नंगे गरीब के साथ होता हैं
वोट लेता हैं, सत्ता में आता हैं
गरीब वहीं के वहीं रहता हैं
तब नेता नामचीन होते हैं
चमक दमाक के लोग
अपवाद पैदा कर ख्यात होते हैं
वो आम जनमानस में द्वेष होते हैं
बेशर्म की हदों के बाद भी बेशर्म रहते हैं
यही नामचीन हैं जो प्रख्यात होते हैं
कई लोग इस मशहूरियत के अंधे होते हैं
निकल पड़ते हैं नमी के गुम नाम में
उघड़ते बदन के परवान होते हैं
वो भी विख्यात होते हैं
जब कहीं बलात्कार होते हैं
सवाल मन में हर...