ग़ज़ल: जबसे वो महफ़िलों में आई नहीं
२१२२/१२१२/२२//११२
जबसे वो महफ़िलों में आई नहीं
मैंने भी शाइरी सुनाई नहीं
उम्र भर की सजा कुबूल मुझे
पर तेरी कैद से रिहाई नहीं
और ज़ख़्मों की...
जबसे वो महफ़िलों में आई नहीं
मैंने भी शाइरी सुनाई नहीं
उम्र भर की सजा कुबूल मुझे
पर तेरी कैद से रिहाई नहीं
और ज़ख़्मों की...