टूटा हुआ इंसान
इस क़दर निर्भर रहा मैं दूसरों पर उम्रभर
अपनी मंज़िल का सफर तय करना नहीं आया
जितने भी फैसले लिए, दखल औरों का रहा
अपने दम पर फैसला एक करना नहीं आया
कोई कठपुतली नहीं मैं मुकम्मल इंसान हूँ
कहने का जी किया मग़र ,कभी कह नहीं पाया
और जिनके साथ का मुझे ताउम्र रहा गुमान
उनमें से कोई वक्त पड़ने पर नज़र ही ना आया
जानी जब तक हक़ीक़त मतलबी दुनिया की मैंने
गुज़र चुका था वक्त मेरा , कुछ भी नहीं पाया
© बदनाम कलमकार
अपनी मंज़िल का सफर तय करना नहीं आया
जितने भी फैसले लिए, दखल औरों का रहा
अपने दम पर फैसला एक करना नहीं आया
कोई कठपुतली नहीं मैं मुकम्मल इंसान हूँ
कहने का जी किया मग़र ,कभी कह नहीं पाया
और जिनके साथ का मुझे ताउम्र रहा गुमान
उनमें से कोई वक्त पड़ने पर नज़र ही ना आया
जानी जब तक हक़ीक़त मतलबी दुनिया की मैंने
गुज़र चुका था वक्त मेरा , कुछ भी नहीं पाया
© बदनाम कलमकार