...

1 views

पहिला साल...
चला गया इंजीनियरिंग का पहिला साल,
बने उसमे कुछ यादें बेमिसाल।
पहिले कुछ दिन था बोहोत बेकार हाल,
जिंदगी में ना था सुर और ना था ताल।
वो मेस की पानी वाली दाल,
काफी है पीगलाने को तुम्हारी ख़ाल।
असाइनमेंट्स का कॉलेज ने ऐसा बनाया जाल,
एक बार उसमे गिरने से हो गया सबका बेहाल।
कुछ प्राध्यापको को पूछने पे अपनी शंका,
कहते मुझेभी इसका उत्तर नही पता,
अब इसमें हम बच्चो की क्या खता,
जब उनकी खुदकी लूटी पड़ी हो लंका।
बने कुछ ऐसे जिगरी,
जिनसे मिलके बिगड़ी हुई जिंदगी थोड़ी सुधरी।
लगता है लग गई है मुझे किसीकी हाय,
वरना ना कहती हर लड़की बात शुरू होने से पहिले गुड बाय,
अभितक न मिली मुझे ऐसी लड़की जिसे कर सकता हूं मैं जब चाहे कॉल,
वैसे लड़कियों से भरा हैं हॉल,
पर दिल नही चाहता होना किसीसे इंवॉल्व,
बस 2nd ईयर में कैसे भी करके भगवान करदे ये प्रोब्लम सॉल्व।

© Rohit Gotmare