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मतलबी दुनिया
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
क्या कहें हमारी क्या मजबूरी है
गरीब कहकर कोई पास आने नहीं देता
हमारी मजबूरी का हर कोई फायदा है उठाता
अपनापन ढूंढ रहा है कौई, लोग क्यों नहीं समझते
हर रिश्तो को यहा लोग पैसों से है तोलते
इंसानियत ही मर गई हो जहां
वहा प्यार के बदले अपमान ही मिलेगा
नहीं होता कोई किसी का अपना
मतलबी लोगों से भरी है ये दुनिया
© kk_jazbaat
#WritcoPrompt #writingcommunity #poetry
#lifestory
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
क्या कहें हमारी क्या मजबूरी है
गरीब कहकर कोई पास आने नहीं देता
हमारी मजबूरी का हर कोई फायदा है उठाता
अपनापन ढूंढ रहा है कौई, लोग क्यों नहीं समझते
हर रिश्तो को यहा लोग पैसों से है तोलते
इंसानियत ही मर गई हो जहां
वहा प्यार के बदले अपमान ही मिलेगा
नहीं होता कोई किसी का अपना
मतलबी लोगों से भरी है ये दुनिया
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