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"जल"
में ढूंढ़ता मार्ग कोई,
ले जाये मुझे, तुझ तक कभी,
मे निराकार सही, पर ढल जाउ उसमे,
जिसमे उतरूं कभी,
दो अक्षर से बना में,
रखूँ सीमाएं असीमित मेरी,
रंगों के भूल-भुलईया से परे,
जाता में अक्सर,
प्यासों की प्यास बुझाने,
जो कभी मिटे नहीं, जो कभी मिटे नहीं..... 🖊️🖊️
© Sarang Kapoor
ले जाये मुझे, तुझ तक कभी,
मे निराकार सही, पर ढल जाउ उसमे,
जिसमे उतरूं कभी,
दो अक्षर से बना में,
रखूँ सीमाएं असीमित मेरी,
रंगों के भूल-भुलईया से परे,
जाता में अक्सर,
प्यासों की प्यास बुझाने,
जो कभी मिटे नहीं, जो कभी मिटे नहीं..... 🖊️🖊️
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