...

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itwar ki subha...
इक सुबहां,
फिर खुद से बात की,

मज़ा आया जानकर,
शख्शियत अपनी भी खास थी,

हटा कर तन्हाई रात की,
उजाला होते ही लोट आये साये से बात की,

क्या ख्वाब क्या उम्मीदे,
ज़िंदा उठे आज फिर हौसलों को दाद दी,

रात ग़म की सिसकियां सुबह चाय की चुस्की,
होश में रहकर सुकून की हाश की,

बदली बदली सी सुबह हे "इतवार" की,
आदत थी रोज़ की "जावेद"आज भी तूने बकवास की....
© y2j