...

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ए-जिंदगी
कुछ समय निकाल कर, मिल मुझसे ए-जिंदगी।
पल का मेहमान हूं, क्यों ख़फा मुझसे ए-जिंदगी।

कुछ बचपन में, कुछ जवानी में खुद को गवाया!
समय व्यर्थ कर, अब पछताया खुदसे ए-जिंदगी।

कल की गलतियों की सजा, आज मिली मुझको!
इतनी दोहरी सजा, क्यों दे रही दिलसे ए-जिंदगी।
© महज़