...

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एक छोर
ठहर जाऊ किसी एक किनारे पर,
या बहती चलीं जाऊ,
एक किनारे बैठें सूरज के उगने का इंतज़ार करू,
या सूरज के साथ निकल कर दुनिया घूम आउ,
रातों को चाँद को निहार के बातें करू,
या खुद चाँद की तलाश में निकल जाऊ,
हवाओं की उम्मीद में खुद को समेटें रखूं,
या हवा के साथ खुद को बिखर जानें दु,
रुक गयी अगर एक किनारे मैं,
तो खुद को खो दूंगी,
जो जीनें की उम्मीद धीरें-धीरें सीनें में जगा रहीं हु,
वो फिर एक बार अंधेरे कमरों में दम तोड़ देगी,
क्या करू किसी के लिए रुक जाऊ,
या खुद के लिए बड़ जाऊ कहीं आगें,
जबाब अधूरें हैं,
सवाल कई हैं,
तलाश जारी हैं,
उम्मीदें खत्म हो रहीं हैं,
सब बदलनें के आस में,
खड़ी मैं एक छोर पर हू।
© shivika chaudhary