...

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लाख हसरतें लिये…..
ना जाने कितने सपने सजाये
लाख हसरतें लिये ,
मिटते रहे हम तेरी “ ऐ इश्क़ “ तेरी
राहों में ,
ख़ुद को मिटाते गये पल-पल ,
कुचलते रहे अरमानों को ,
ना किया कभी किसी से शिकायत ,
मगर क्या कहें हम इस जमाने से ,
जो था अपना वो अपना ना हुआ ,
बनकर सपना किसी और के पलकों का ,
खेलता रहा मेरी जज़्बातों से .!!