ये सावन
आंखो के आगे छाया सुरम्य परिवेश सुहाना
नव पुष्प से पल्लवित हो रहे है मधुर सपने
दृश्य सुसज्जित प्रीत के, छाए है अब मन में मेरे
नीलगगन समुद्र से सघन गहरा है मन
सतरंगी भावो के मत्स्य करे खूब उछाल
अब के आ जा ,पिया इस सावन में
नीलकंठ बन दोनो करे एकांत प्रवास
प्रकृति कानन ओढ़े हरित मखमली कंबल
अदभुत रंगो से चित्रित है प्रकृति का संसार
अब कि पिया प्यार के महकते सावन में
हरी चूड़ियां, धानी चुनर, मेंहदी से कर मेरा श्रृंगार
© ऋत्विजा