...

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तुम
बदलते हुए मौसूम की बिन बुलाए बरसात हो तुम।
प्रेम की शब्द सुनते ही सबसे पहले दिल में आने वाला एहसास हो तुम।
आजकल कहां लिखती हूं में तुमको,
कागजों में छिपाया हुआ हर एक शब्द हो तुम।
कहीं कोई नजर न लगा दें तुमको,
मेरे बिन कहे वाला जज़्बात हो तुम।
तुम्हे कहां पता है मुझमें तुम कोन हो,
मेरे भीतर सुकून से बैठने वाला आत्मा हो तुम।
यूंही नहीं में करती तारीफ मर्दों की दिल की,
न चाहा कर भी मेरे हर एक लब्जों में उतरते हो तुम।
मुझमें "में" कहने वाला शक्स हो तुम।
© dikshya