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कोरोना
तुने धरती बांटी, सागर बांटा,
अब इंसान बांट रहा है,
कभी धर्म, जाति, समुदाय,
के रूप में लोगों को छांट रहा है,
अब पता नहीं मुझे भेजा गया है,
या मैं आया हूँ,
साथ में मौत का डर भी लाया हूँ,
देखा ,मैंने आतें ही परिवार से ,
परिवार को बांट दिया,
दोस्त, पडोसी, रिश्तों को बांट दिया,
सब घर में कैद हैं,
बाहर निकलना अवैध है,
अब सब अकेले-अकेले है,
तु भी तो यही चाहता था,
एक बात दुं तुझे,
मैं तो एकता, अनुशासन,
और सद्भाव का कायल हूँ
जहाँ लोगों में मैने यह पाया है,
वहां से मै खुद चल पड़ा,
या मुझे भगाया है,
लेकिन यहाँ तो मैंने देखा है,
कोई करें संतों पर तो कोई,
कर्म वीरों पर हमला,
कर्म वीरों के पैसे से करोडपतियो,
का कर्ज माफ कर भरे बंगला,
यहां कहा जाता हैं अंदर रहो,
तो बाहर आते,
दिया जलाओ पटाखे जलाते,
थाली बजाओ तो ढोल बजाते,
एक-दुसरे पर आरोप लगाते,
यहाँ न एकता,अनुशासन है,
ना है सद्भाव,
इसलिए मेरा तेरे यहाँ रहने,
का बढ़ रहा लगाव ,
जब तु एकता, अनुशासन,
व सद्भाव लायेगा,
तभी मुझे भगा पायेगा,
मैं तो चला जाऊंगा
लेकिन मिलकर,
एकजुटता से नहीं रहे,
तो फिर कोई मेरा भाई कोरोना आयेगा,
और इसीतरह सतायेगा।
Ds gurjar *dev*