...

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आसमान को आज चिढ़ाऊं
कल का कोई अंदेशा नही
परसों का क्या अनुमान लगाऊं"
घड़ी घड़ी सोच के कल को
क्यूँ अपना आज जलाऊ!!

खरीद लू अपना इंद्र धनुष
आसमाँ को आज चिढ़ाऊं "
सारे रंग लूटाकर इसके
मैं नया कोई रंग बनाऊँ!!

दिन को यह सब देख यदि बुरा लगे
तो रात को भी थोड़ा छेडूं
तारों को अपने माथे पर लगा कर
चाँद को बाहों में भरूं
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