कैद
स्वर्ण पिंजरे में कैद हुआ हर पंछी,
नहीं चाहता है वो अबाध्य आज़ादी ,
गुलामी का मर्म और अर्थ केसे समझेगा ,
संघर्ष रहित दानों का जो हो चुका है वो आदि।
खुले नीले आसमानों का अनुभव वो भला क्या जानेगा ,
जिसकी उड़ान का सफर जन्म से ही छोड़ दिया गया था बाकी।
जीवन सिमट कर रह गया है बस ज़िंदा रहने तक ,
उड़ने की छटपटाहट से उत्पन्न पीड़ा को ही समझ चुका है वो अब अपनी शांति।
मन भले से ना वाकिफ हो स्वयं के जीवन रूपी अस्तित्व की उत्पत्ति से ,
प्रवत्तिया उसकी रचना स्वरूप की, उसका शरीर जो जानता है भलीभांति से ;
पंख स्वयं से फड़फड़ाने का निष्फल प्रयास कभी किया करते थे आरंभ...
नहीं चाहता है वो अबाध्य आज़ादी ,
गुलामी का मर्म और अर्थ केसे समझेगा ,
संघर्ष रहित दानों का जो हो चुका है वो आदि।
खुले नीले आसमानों का अनुभव वो भला क्या जानेगा ,
जिसकी उड़ान का सफर जन्म से ही छोड़ दिया गया था बाकी।
जीवन सिमट कर रह गया है बस ज़िंदा रहने तक ,
उड़ने की छटपटाहट से उत्पन्न पीड़ा को ही समझ चुका है वो अब अपनी शांति।
मन भले से ना वाकिफ हो स्वयं के जीवन रूपी अस्तित्व की उत्पत्ति से ,
प्रवत्तिया उसकी रचना स्वरूप की, उसका शरीर जो जानता है भलीभांति से ;
पंख स्वयं से फड़फड़ाने का निष्फल प्रयास कभी किया करते थे आरंभ...