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जनहित की जड़ की बात - 18
कालाधन कह लाइन में, खड़ा किया था देश !
कानूनी बदलाव कर, करते कालेधन पे ऐश !!

बैंकों में जमा करा के, कर्जे कर लिये माफ !
रकम बाँटने के लिये, किये सारे रस्ते साफ !!

तीन वर्ष की, औसत आय का, साड़े सात प्रतिशत !
दल को दान, दे ना सकत थे, इससे अधिक दौलत !!

इस नियम को बदल दिया और अरबों लिये समेट !
काला हो या सफ़ेद धन, इसका यहां नहीं कोई भेद !!

देश से ही नहीं अब तो, दुनियाभर से ले सकते !
दोनों हाथों समेट के कैसे, दूध धुले बन सकते !!

आमजन को समझ नहीं, हरगिज नहीं है बात !
जनजन को जान बूझ, मुसीबतों में उलझात !!

इन सभी से, जनसमझ की, ताकत घटा दी जाती !
सारी दौलत, नेताओं के ही, इर्द गिर्द इठलाती !!

जन कोष डकैती की रकम, ऐब - ऐश बढाती !
अपराध प्रवृति भी इससे, दिनदुनी बढ़ती जाती !!

आये दिन गांव गली में, अस्मत लूट ली जाती !
अपराधियों की सालों साल, सजा टलती जाती !!

भूखे प्यासे लोगों की, है देश में भरमार !
नई आस में अदल बदल के, चुन लेते सरकार !!

कभी किसी सरकार ने, जन पे दिया ना ध्यान !
दिखावे में ही, खींचे जाते, इक दूजे के कान !!

मेहनत से कमाया धन, जन, करे बैंक में जमा !
बड़े बड़े ले उड़ते उसे, नियमों को धता बता !!

मशीनमन, मशीनरीमन, जनमन पर भारी !
हमरी दमड़ी लूट के, रख लेत मशीनगन धारी !!

चक्रव्यूह को भेदन हेतु, लगेंगे कई अभिमन्यु !
एक साथ कई मंचों से, जन भी रचे चक्रव्यूह !!

जनहित चिन्तकों के, साथ जब, सभी खड़े रहेंगे !
अनमोल आज़ादी के चमन में, तभी फूल खिलेंगे !!

- आवेश हिन्दुस्तानी 22.10.2020