बचपन का घर..
#घरवापसीकविता
वो आंगन, जहाँ मैं पायल छनकाती दौड़ा करती थी,
अब सूना है, जैसे किसी गीत ने चुप्पी ओढ़ ली हो,
वो गुड़िया का घर, जिसकी ईंटें सपनों से बनी थीं,
आज भी कोने में, पर मेरी नज़रों से कहीं खो गई हो।
माँ की ममता भरी छांव, वो रसोई की मीठी खुशबू,
पिताजी के कंधे, जहाँ दुनिया से ऊँचा महसूस होता था,
सब कुछ तो वहीं है, फिर क्यों ये दिल उदास है,
शायद मैं ही बदल गई हूँ, या फिर वक़्त...
वो आंगन, जहाँ मैं पायल छनकाती दौड़ा करती थी,
अब सूना है, जैसे किसी गीत ने चुप्पी ओढ़ ली हो,
वो गुड़िया का घर, जिसकी ईंटें सपनों से बनी थीं,
आज भी कोने में, पर मेरी नज़रों से कहीं खो गई हो।
माँ की ममता भरी छांव, वो रसोई की मीठी खुशबू,
पिताजी के कंधे, जहाँ दुनिया से ऊँचा महसूस होता था,
सब कुछ तो वहीं है, फिर क्यों ये दिल उदास है,
शायद मैं ही बदल गई हूँ, या फिर वक़्त...