...

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सिर्फ मै और तुम..।
जैसे चांद के संग चांदनी, सांसों के सरगम।
जैसे मधुकर फूलों पर, बांसुरी होंठो पर।
वन में हिरन , हिरनी के साथ- साथ।
शीतल- सा पानी पत्थर पर बहता, बुझाता होंठो के प्यास।



जैसे धूप और छांव के मिलन, पतंग साथ डोर।
जैसे शाम और सवेरा, दूल्हा- दुल्हन का फेरा।
तारो के रोशनी अम्बर पर, खिलता सुबह कमल।
किसी सौंदर्य स्त्री के आंखो में, गाढ़ा सा कज्जल।



जैसे म्यान में तलवार चिपककर, सावन के झूला डाली पर।
जैसे खुशबू उड़ते फूलों के, हवाओं में,
नर्तकी नृत्य करती बहारों में।...