...

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उलझने है बहुत .........
उलझने है बहुत मगर
सुलझा लिया करती हूँ

कमज़र्फी को अपनी मै इस ज़माने से
कुछ छुपा लिया करती हूँ........

कोई लाख कहे नाकाम मुझको
मै खुद अपने हौसलों की पीठ थपथपा...