भगत सिंह
खून की तरह तुम्हारे,
ये नीली स्याही फिर लाल हो गई,
मेरी कलम बोल उठी फिर इंकलाब,
वो केसरी पगड़ी तुम्हारी आबाद हो गई,
तू वतन की राह पे चला,
थका नहीं रुका नहीं,
है बोलती तुम्हारी बेड़ियां,
आंखें लहू-लुहान हो गई,
तख्त जिस पर हम चैन की नींद सोए,
और तख्त वो जिसपे तुम आजादी के लिए सोए,
तुम्हारे साथियों का क्या कहना,
उनकी सांसें वतन कुर्बान हो गई,...
ये नीली स्याही फिर लाल हो गई,
मेरी कलम बोल उठी फिर इंकलाब,
वो केसरी पगड़ी तुम्हारी आबाद हो गई,
तू वतन की राह पे चला,
थका नहीं रुका नहीं,
है बोलती तुम्हारी बेड़ियां,
आंखें लहू-लुहान हो गई,
तख्त जिस पर हम चैन की नींद सोए,
और तख्त वो जिसपे तुम आजादी के लिए सोए,
तुम्हारे साथियों का क्या कहना,
उनकी सांसें वतन कुर्बान हो गई,...