...

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अच्छा लगता है...
बात यहाँ दुनियादारी की नहीं, हमारे जज़्बात की है,
तेरा हाथ थामकर पीछे-पीछे चलना अच्छा लगता है।

हक़ हो, वजूद हो, मेरा सब कुछ तो तेरे साथ ही है न,
मैं हूँ, जैसी भी हूँ, मेरा सारा संसार तेरे साथ ही है न,
बात यहाँ हिस्सेदारी की नहीं, हमारे ख़्यालात की है,
तेरा हाथ थामकर पीछे-पीछे चलना अच्छा लगता है।

घूँघट में रहूँ या रहूँ ऊँचाई में, तेरा ही तो मैं मान हूँ न,
नाम, साथ हो या मेरे नाम के पीछे, तेरा सम्मान हूँ न,
बात यहाँ जिम्मेदारी की नहीं, हमारे लम्हात की है,
तेरा हाथ थामकर पीछे-पीछे चलना अच्छा लगता है।

'मर्द' 'औरत', यह तो ज़माने के बुने हुए जंजाल हैं,
'मायने' क्या रखता है, बस यही तो कुछ सवाल हैं,
बात यहाँ तरफ़दारी की नहीं है, हमारे 'साथ' की है,
तेरा हाथ थामकर पीछे-पीछे चलना अच्छा लगता है।

बात यहाँ दुनियादारी की नहीं, हमारे जज़्बात की है,
तेरा हाथ थामकर पीछे पीछे चलना अच्छा लगता है।
-संगीता पाटीदार

#WritcoAnthology #Poetry