हम और समाज
जब भी हम,
अकेले में शांत होते हैं,
तब बनता रहता हैं
हमारे अंदर एक नया समाज,
दिन के ढलते,
रात के गहरे होने के साथ साथ
बनता जाता हैं,
हमारे अंदर एक और समाज,
जो बेहद खूबसूरत सबको समाहित करता जाता हैं,
बिना किसी से कुछ मांगे और पूंछे,
लेकिन,
होते सुबह के साथ,
जागते हुए भी हम फिर से,
उसी भीड़ भरी उसी समाज में समाहित हो जाते हैं बिना शांत हुए,
जो हमारे बचपन के समाज से ,
बिल्कुल अलग हैं।
अकेले में शांत होते हैं,
तब बनता रहता हैं
हमारे अंदर एक नया समाज,
दिन के ढलते,
रात के गहरे होने के साथ साथ
बनता जाता हैं,
हमारे अंदर एक और समाज,
जो बेहद खूबसूरत सबको समाहित करता जाता हैं,
बिना किसी से कुछ मांगे और पूंछे,
लेकिन,
होते सुबह के साथ,
जागते हुए भी हम फिर से,
उसी भीड़ भरी उसी समाज में समाहित हो जाते हैं बिना शांत हुए,
जो हमारे बचपन के समाज से ,
बिल्कुल अलग हैं।