ग़ज़ल
आज की ताज़ा प्रस्तुति ~
जीने के सामान बहुत हैं।
पर दिल में अरमान बहुत हैं।
हैवानों की बढ़ती टोली,
खौफ़ज़दा इंसान बहुत हैं।
सीने में इक आग लगी है,
बारिश के इमकान बहुत हैं।
कहाँ कहाँ हम माथा फोडें,
पत्थर के भगवान बहुत हैं।
शहर हो गये अजगर जैसे,
गाँव किये वीरान बहुत हैं।
वफ़ा और इस दौर में ढूंढ़ेँ,
यार मेरे नादान बहुत हैं।
मां के हाथ का स्वाद नहीं है
थाली में पकवान बहुत हैं।
किस किस से मुहतात रहें अब,
रहबर सब बेईमान बहुत हैं।
रूठ गये दो चार तो क्या है,
उनके तो जजमान बहुत हैं।
© इन्दु
जीने के सामान बहुत हैं।
पर दिल में अरमान बहुत हैं।
हैवानों की बढ़ती टोली,
खौफ़ज़दा इंसान बहुत हैं।
सीने में इक आग लगी है,
बारिश के इमकान बहुत हैं।
कहाँ कहाँ हम माथा फोडें,
पत्थर के भगवान बहुत हैं।
शहर हो गये अजगर जैसे,
गाँव किये वीरान बहुत हैं।
वफ़ा और इस दौर में ढूंढ़ेँ,
यार मेरे नादान बहुत हैं।
मां के हाथ का स्वाद नहीं है
थाली में पकवान बहुत हैं।
किस किस से मुहतात रहें अब,
रहबर सब बेईमान बहुत हैं।
रूठ गये दो चार तो क्या है,
उनके तो जजमान बहुत हैं।
© इन्दु