...

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कलंक
तुम्हारी लकीरों से चुराई
मैंने दिल पे ये कलंक क्यों?
तुझसे दर्मियां तेरी ही
छोड़ गई ये कलंक क्यों?

पास हो कर तेरी हर कमी
बंध गई फलक से क्यों?
तेरी यादें, मेरी उम्मीदें
दिल पे है कलंक ये क्यों?

बिक जाए जो दिल ऐसे ही
तुम दिखा गए ये झलक क्यूं?
प्यार सौदा हो तो तुम पे कभी
लगती नही ये कलंक क्यों?

तसव्वुर के बीते लम्हे,
हर मोहलत खफा एक पलक में क्यूं?
जूझ रही ये जिंदेगानियां
डरती नहीं इस कलंक से क्यों ?
© Sabita