...

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तुझे आवाज लगा लूं क्या?
बड़ी सोचों से घिरा हुआ हूं
आज तुझे आवाज लगा लूं क्या?

अपना नाम सुनना है वो तेरे अंदाज में
तुझे अपनी ये ख्वाइश बता दूं क्या?

नए कई मसले करने हैं साझा
हवाओं के हाथ पैगाम भिजवा लूं क्या?

फिर तू देगा हवाला नए महबूब का
यूं याद करके खुद को ही समझा लूं क्या?

या दिल में उठती इस आग को
तुझसे गुफ्तगू कर बुझा लूं क्या?

ज़हर सी इस ज़िन्दगी में
दो घूंट मिलावटी शहद के पी लूं क्या?

बार बार उठती इस बेचैनी की खातिर
इज्ज़त ए नफस रौंद डालूं क्या?


-varshapanchal