...

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मुझे जानना है तुम्हारा खयाल ।
मुझे जानना हैं तुम्हारा खयाल।

पर उन हर शख्सो की तरह नही,
जो हर रोज की तरह मुलाकात में
यु ही जान लिया करते हैं
तुम्हारा खयाल ,
और हर रोज की तरह
तुम भी बता देते की
ठीक हैं तुम्हारा हाल-चाल ।

यु जख्मो को अंदर रखकर
अपने दिल को भारी सा मत करो ।
थोड़ा सा हमारे साथ भी
बाँट लिया करो।

मैं तुम्हे कमज़ोर समझूंगी,
यह समझकर ग़लतफ़हमी
मत कर देना;
मैं तुम्हारे गम का
मज़ाक बना दूंगी समझकर,
मेरे सवाल को टाल मत देना ।
मैं तुम्हे समझ नहीं पाऊँगी समझकर,
मुझे नकार मत देना;
'मेरी बस की बात' नहीं है कहकर
चले मत जाना।

'कुछ नही हैं' कहकर
एक बार में जवाब न देने पर
फिर से पूछूँगी,
जब तक तुम्हारे मन को
सुकून न दिला दू,
तब तक तुम्हारे पास बैठूंगी।

भूल मत जाना कि
तुम्हारी आँखे उन लफ़्जो को
ज़ोर  ज़ोर से चीख रही हैं,
जीसे तुम ने ज़ोर जबरदस्ती
अपने अंदर थमा ली हैं ।

वादा करती हू
मैं तुम्हे निराश नहीं करूंगी।
तुम्हारा सर अपने कंधे पर रखकर,
आराम से रोने दूंगी।

अब बस बता भी दो
तुम्हारी इस मायूसी की वजह,
और बहने दो इन आंसूओ को
यह समझकर कि कोई नहीं हैं
तुम्हारे सिवा ।

मुझे बदलना हैं
तुम्हारी यह झूठी मुस्कुराहत को,
फैलाने हैं तुम्हारे जीवन में रंगों को,
क्योंकि मेरी मुस्कुराहत की वजह
तुम्हारी खुशी ही तो है,
जिससे तुम ने अपने मुँह
फेर लिए हैं।

© Dikshita Parasar