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🌺इक ख्वाब सुनहरी हो जैसे!♥️
♥️🌺♥️🌺♥️🌺♥️
इतनी सीधी- सादी सी,
टिकी ठहरी हो कैसे,
स्वाभाविक नदिया-सी
इतनी गहरी हो कैसे,
जाड़े की ठिठुरन में,
नरम दुपहरी हो जैसे,
गुनगुगाती हो तो लगती
सुगम स्वर-लहरी हो जैसे,
रूप-लावण्य की लगती
नैसर्गिक प्रहरी हो जैसे,
पूर्णिमा की आभा से युक्त,
आहह, इक ख्वाब सुनहरी हो जैसे!
🌺♥️🌺♥️🌺♥️🌺♥️
—Vijay Kumar
© Truly Chambyal
इतनी सीधी- सादी सी,
टिकी ठहरी हो कैसे,
स्वाभाविक नदिया-सी
इतनी गहरी हो कैसे,
जाड़े की ठिठुरन में,
नरम दुपहरी हो जैसे,
गुनगुगाती हो तो लगती
सुगम स्वर-लहरी हो जैसे,
रूप-लावण्य की लगती
नैसर्गिक प्रहरी हो जैसे,
पूर्णिमा की आभा से युक्त,
आहह, इक ख्वाब सुनहरी हो जैसे!
🌺♥️🌺♥️🌺♥️🌺♥️
—Vijay Kumar
© Truly Chambyal
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