...

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इस्मत
चिलमन ए इस्मत से तो फासला बेहतर होगा
जो परदा उठ गया तो आगाज ए मेहशर होगा

नजरों के वैर में क्या अधरों से कहकर होगा
हक़ है इस जुल्म का इंतिकाम सहकर होगा

महफ़िल ए अश्क में क्या खुश्क रहकर होगा
पर्बत से समन्दर का तय रास्ता बहकर होगा

श्रृंगार उनका देख दश्त आईना जलकर होगा
सराब ए संग ए अक्स कुछ दूर चलकर होगा

सौदाई को शौक ए गम-ख्वारी जमकर होगा
जो आया लौट के इस रास्ते पर कंकर होगा

© Mahamegh