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इस्मत
चिलमन ए इस्मत से तो फासला बेहतर होगा
जो परदा उठ गया तो आगाज ए मेहशर होगा

नजरों के वैर में क्या अधरों से कहकर होगा
हक़ है इस जुल्म का इंतिकाम सहकर होगा
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