मिलन
यह प्रेम की कविता बहुत ज्यादा ही जीवन और प्रेम रस से परिपूर्ण है क्योंकि यह कविता प्रेम भाव से उत्पन्न हुई और यह केवल मेरे गुरुदेव के कारण है । मैं अपने कल्पना में अपनी प्रियतम से मिला था और जो मेरे भाव निकले वह कविता के प्रवाह में बह गए हैं ।आशा है , आप पाठकों को पसंद आए-
तुम इस तरह सामने श्रीहरि,
मैं बस तुम्हें निहार रही।
कितनी सुंदर अखियां है ,
मैं व्यक्त ना कर पा रही ।
तुम्हारे गाल की लालिमा
और केश तुम्हारे कोमल से ।
होंठ तेरे गुलाबी हैं
और रुप तो यौवन से ।
मेरे हाथों में लगी रंग
अपने गाल बस सटा दे तू।
कोमलता और प्रेम का
परम एहसास करा दे तू ।
रंग दे इस होली में ,
रंग दे मुझे तू अपने रंग।
कण-कण मेरा डूब चुका है ,
लीलाधर तेरे संग ।
प्रेम के इस भांग से
और कुछ ना रसीला है ।
कैसी तेरी लीला है ,
यह कैसी तेरी लीला है।
तेरी बांसुरी की धुन है
और हमारी है छन- छन -छन ।
हंसी ठिठोली चारों ओर ,
है राधे -कृष्ण कण-कण।
© श्रीहरि
तुम इस तरह सामने श्रीहरि,
मैं बस तुम्हें निहार रही।
कितनी सुंदर अखियां है ,
मैं व्यक्त ना कर पा रही ।
तुम्हारे गाल की लालिमा
और केश तुम्हारे कोमल से ।
होंठ तेरे गुलाबी हैं
और रुप तो यौवन से ।
मेरे हाथों में लगी रंग
अपने गाल बस सटा दे तू।
कोमलता और प्रेम का
परम एहसास करा दे तू ।
रंग दे इस होली में ,
रंग दे मुझे तू अपने रंग।
कण-कण मेरा डूब चुका है ,
लीलाधर तेरे संग ।
प्रेम के इस भांग से
और कुछ ना रसीला है ।
कैसी तेरी लीला है ,
यह कैसी तेरी लीला है।
तेरी बांसुरी की धुन है
और हमारी है छन- छन -छन ।
हंसी ठिठोली चारों ओर ,
है राधे -कृष्ण कण-कण।
© श्रीहरि