अनजान ...
#छिपेविचार
बैठा रहा मैं
तुम्हारी तिजोरी के सामने
तकता रहा पड़ी उस धूल को
काफी वक्त बाद आया तुमसे मिलने
निहारता रहा पड़ी उस चाबी को
ज़ंग लग चुका है फिर भी इंतज़ार में है
पता नहीं क्यों?
शायद वो भी मेरी बेबसी से वाकिफ है
तुम्हारी यादें झांक रही है
कंपकंपाते हाथों से
उन्हें थामने के अलावा ओर
मैं कुछ न कर सका
तुम्हारे वादें उस तिजोरी के
आस पास ऐसे डेरा डालीं है
उन्हें आंखों में बसाने के अलावा
मैं कुछ न कर...
बैठा रहा मैं
तुम्हारी तिजोरी के सामने
तकता रहा पड़ी उस धूल को
काफी वक्त बाद आया तुमसे मिलने
निहारता रहा पड़ी उस चाबी को
ज़ंग लग चुका है फिर भी इंतज़ार में है
पता नहीं क्यों?
शायद वो भी मेरी बेबसी से वाकिफ है
तुम्हारी यादें झांक रही है
कंपकंपाते हाथों से
उन्हें थामने के अलावा ओर
मैं कुछ न कर सका
तुम्हारे वादें उस तिजोरी के
आस पास ऐसे डेरा डालीं है
उन्हें आंखों में बसाने के अलावा
मैं कुछ न कर...