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घड़ी की पुकार
#घड़ी के विचार

घड़ी की सुइयां चुपचाप चलती जाती,
हर लम्हें को अपने आंखों में भरती जाती।
खुशी और गम के पल, सब सह लेती है,
खुद ठहरना चाहकर भी, बस बढ़ती जाती है।

घड़ी ने देखा हर लम्हें क चुपचाप गुजरते,
हर टिक में कई अरमानों को बिखरते।
वह थककर भी कभी रुक नहीं पाती,
वक्त की बेड़ियो में बंधी बस चलती जाती।
हर पल के साथ, एक नया फसाना कह जाती।