...

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"जरा जरा सी ख्वाहिशे "
भला किसको लगाव है मौत से अपनी,
हर किसी की ख्वाहिस यहाँ,
हसीन जिंदगी है...,
भला कौन चाहेगा...यहाँ काँटे राहो में अपनी,
हर किसी की ख्वाहिस यहाँ,
हसीन मन्जिल है...,
एक मै हूँ...कम्बख्त यहाँ,
जो ख्वाहिस ए कफ़न तिरंगा मांगती हूँ...
भला कौन यहाँ..ऐसा शख्स हुआ,
जिसको बांट सके ख्याल अपने,
हर कोई यहां... चुप्पी साधे खड़ा,
एक बुझ्दिल मै ठहरी यहाँ,
जो पन्नो पर दर्द बहाती हूँ,
खैर.. मुर्शिद.. मुझे,
लिखना तो नही आता अच्छा,
जो दिल से निकले मेरे...
मैं वही अनसुने...दर्द लिखती हूँ,
भला कौन सुनेगा...यहाँ पहेलियां मेरी,
ये सोच मैने...पन्नेे हजार रद्दी किये,
तुम शायर कहो मुझे.. या कहो कोई मुसाफ़िर,
मैं लिखती भी पन्नो पर और भटकी भी इन किताबों में हूँ,
जितना मिला उतना सही..
यूँ ढूंढ ढूंढ हल अपने मैने,
बेहतर लिखना सीख लिया,
भला निकली थी... मैं सवाल लिए,
यूँ उलझ कलम में रह गयी,
क्या लिखती हूँ.. क्या सोचती हूँ,
कहाँ शुरुआत.. कहाँ खत्म मै कर देती हूँ,
माफ़ करना मुझे...ओ सहने वालों,
मै बुझ्दिल सी... उहापोलो में,
उलझ कर रहती हूँ,
भला जान पाए कोई मुझको राही,
जरा पता..मेरा मुझे बता देना..,
किसको लगाव इन अड़चनों से यहाँ,
हर किसी की ख्वाहिस,
सरल.. सौंदर्य सी जिंदगानी है...!!

#unbelievable_poetess♛┈•༶
#अस्तित्व #unique
© Deepika Agrawal_creative