...

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"जरा जरा सी ख्वाहिशे "
भला किसको लगाव है मौत से अपनी,
हर किसी की ख्वाहिस यहाँ,
हसीन जिंदगी है...,
भला कौन चाहेगा...यहाँ काँटे राहो में अपनी,
हर किसी की ख्वाहिस यहाँ,
हसीन मन्जिल है...,
एक मै हूँ...कम्बख्त यहाँ,
जो ख्वाहिस ए कफ़न तिरंगा मांगती हूँ...
भला कौन यहाँ..ऐसा शख्स हुआ,
जिसको बांट सके ख्याल अपने,
हर कोई यहां... चुप्पी साधे खड़ा,
एक बुझ्दिल मै ठहरी यहाँ,
जो पन्नो पर दर्द बहाती हूँ,
खैर.. मुर्शिद.. मुझे,
लिखना तो नही आता अच्छा,
जो दिल से निकले मेरे......