मैं
एक टूटा सा तारा बन गई हूं मैं
ख्वाहिशों से परे एक सूखा सा
पत्ता बन गई हूं मैं......
हर रोज आंसू झलक जाते हैं
मेरी इन आंखों से
पुराने दर्द के साथ साथ
नए दर्द को भी आमंत्रित
कर रही हूं मैं......
खत्म ना हों...
ख्वाहिशों से परे एक सूखा सा
पत्ता बन गई हूं मैं......
हर रोज आंसू झलक जाते हैं
मेरी इन आंखों से
पुराने दर्द के साथ साथ
नए दर्द को भी आमंत्रित
कर रही हूं मैं......
खत्म ना हों...