इंसान रूपी भेड़िया
मौन है ये जहां क्योंकि रही न तुझे खुद की परवाह तेरी।
बन जा तू खुद चंडी नारी, किस बात की तुझको है देरी?
दुःशासन से भरी ये दुनिया, भेड़ियों ने सभा लगा ली है,
उठ नारी तलवार उठा, बनना तुझे ही दुर्गा-काली है।
आदिकाल से अपमान सहा है, अब आयी तेरी बारी है,
महाभारत की बात अलग थी, कलयुग तो अत्यंत दुराचारी है।
क्यों पड़ी है सोच में स्त्री, यहां न माधव न गिरधारी...
बन जा तू खुद चंडी नारी, किस बात की तुझको है देरी?
दुःशासन से भरी ये दुनिया, भेड़ियों ने सभा लगा ली है,
उठ नारी तलवार उठा, बनना तुझे ही दुर्गा-काली है।
आदिकाल से अपमान सहा है, अब आयी तेरी बारी है,
महाभारत की बात अलग थी, कलयुग तो अत्यंत दुराचारी है।
क्यों पड़ी है सोच में स्त्री, यहां न माधव न गिरधारी...