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आइना
कविता-आइना


खोजता है किसको क्षण क्षण
ढूढ़ता है किसको पल पल

बह रही गर आंधी दुःख की
कष्ट का कंकड़ थपेड़ा
छा रही है मंजिल पथ पर
धूल धूसितमय अंधेरा
मानो मन का हीलता जड़
टूटते हों स्वप्न सारा
कांपते हों पांव थर थर
न कोई अपना सहारा
लगता क्या कोई आयेगा
खोलेगा सुख का पिटारा
किसको क्या इतना पड़ा है
दूर कर दे दुःख तुम्हारा

खोजता है किसको क्षण क्षण
ढूढ़ता है किसको पल पल।

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