...

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आहट....
आहटों को अनिवार्य कर देना चाहिए
जैसे आता है कोई अनजाना चुपचाप
ह्दय के द्वार पर बिन दस्तक
जैसे बेल हो अपराजिता की
शांत निर्झर निरंकुश
पाश मे बांध लेती बिन जाने बिन पूछे
एहसास जिस पल हुआ ह्दय था लिपटा हुआ
उसके साथ न छूटने न टूटने की कोशिश
पर जो था बंधा वह था अटूट
सूख कर झडने तलक था स्वीकार किया
पर जुडने और टूटने के पहले एक दौर था
जब आहटों को अनिवार्य कर देना चाहिए था।
तिनकों सा बिखरी पडी मिलूं उसे कभी
और वो मोती की तरह समेट ले मुझे।
उसको उस तक पहुंचाने का एक ही रास्ता था
कि मैं उसके रास्ते में न रहूँ।